कपूर वासनिक
कल का जख़्म
कुछ और ही था
ऐसे कैसे कहूं दोस्त
पीड़ा के आवर्तनों की जाति
एक ही तो है
माना आज सिर्फ खरोंच आई है
भलभला कर खून नहीं बह रहा
कल की तरह
लेकिन आज की खरोंच ही से
कल का जख़्म हरा हो चुका
उसका क्या...?
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कविता वाहिनी हिंदी
मराठी साहित्य जितना विपुल है, उतना ही संपन्न भी और यह संपन्नता कहीं न कहीं दूसरी भारतीय भाषाओं को भी समृद्ध करता है. कविता वाहिनी के हिंदी ब्लॉग का उद्देश्य मराठी साहित्य के इसी उद्दात स्वरुप को प्रस्तुत करना है. हमारे इस विनम्र प्रयास को आपके सहयोग की भी प्रतीक्षा रहेगी.
-कपूर वासनिक
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कपूर वासनिक
शुक्रवार, 18 सितंबर 2009
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